Tuesday, March 20, 2012

Aaj...




आंखें जो मैने बंद की
सोचा
नींद आये शायद, कोई ख्वाब आये, सुकून आये

ख्वाब आये
मगर ना सुकून आया
और ना ही फिर नींद आई

वो ख्वाब था
या उस सपने के चन्द टूटे हुए हिस्से थे
जो मैंने जागती आख़ों से देखा था

बिखरे हुए कुछ टुकड़े
जो कहीं खो गये थे मुझसे

बिना मुझे बताये
जुड़ गये

सपना खुली आँख का ना सही
बंद आँखों का ख्वाब बन गये

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