
हर रोज़ चंद लम्हे वो होते है
जो गुज़रे हुए कल की याद में खर्च होते है
यादें मेरे पीछे भागती है
और उन लम्हों में मुझे छु लेती है
समेट लेती है
या शायद में यादों को लिये
आज से दूर भागती हूँ
आज का उधार
बीते कल पे खर्च करके
आने वाले कल का भोझ कम लगने लगता है |
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